शनिवार, मार्च 02, 2024

प्रेम रेखाओं के पचड़े में नहीं पड़ता

दो समानांतर रेखाएं
आपस में
कभी नहीं मिलती
ऐसा रेखा गणित के जानकार
बताते हैं

लेकिन प्रेम में डूबे दो अजनबी
बताते हैं कि
जब हम खींचते हैं
एक दूसरे के
पास आने के लिए रेखा
तब 
दोनों रेखाएं
समानांतर होते हुए भी
एक छोर से
दूसरे छोर को
मिलाने की कोशिश करते हैं

इस तरह का झुकाव
समानांतर होते हुए भी
दो 
सीधी रेखाओं को 
आपस में जुड़ने का
मशविरा देता है

क्योंकि
प्रेम
रेखा गणित की
रेखाओं में
नहीं उलझना चाहता
वह तो
दो रेखाओं का
घेरा बनाकर
इसके भीतर
बैठना चाहता है

प्रेम 
रेखाओं के पचड़े में नहीं पड़ता 
वह
अपने होने
और अपने प्रेम के वजूद को
सत्यापित करने की
कोशिश करता है--- 

◆ज्योति खरे

बुधवार, जनवरी 03, 2024

तुम्हारी चीख में शामिल होगा

तुम्हारी चीख में शामिल होगा
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अखबार के मुखपृष्ठ में 
लपेटकर रख लिए हैं
तुम्हारे लिखे प्रेम पत्र
और गुजरा हुआ साल
  
जब
बर्फ़ीली हवाओं में 
ओढ़ कर बैठूंगा रजाई
तो पढूंगा प्रेम पत्र और 
बीते हुए साल का लेखा-जोखा

उम्मीदें खुरदुरी जमीन पर
कहाँ दौड़ पाती हैं 

तुम जब लिख रही थी
प्रेम पत्र और उनमें
बैंडेज की पट्टी के साथ
चिपका रही थी गुलाब
डाल रहीं थी सपनों की स्वेटर में फंदा
उसी समय
राजधानी में रची जा रही थी
धर्म को, ईमान को 
और 
मनुष्य की मनुष्यता की पहचान को
मार डालने की साजिशें 

ऐसे खतरनाक समय में 
प्रेम कहाँ जीवित रह पाता है

मैं अपने ही घर से बेदखल 
होने की बैचेनियों से गुजर रहां हूं
लड़ रहा हूं 
साज़िशों के खिलाफ़

तुम भी तो
गुजर रही हो इसी दौर से
जब कभी घबड़ाओ 
तो बहुत जोर से चीखना 
तुम्हारी चीख में शामिल होगा
एक सवाल
आसमान तुम चुप क्यों हो----

 ◆ज्योति खरे

गुरुवार, अक्तूबर 05, 2023

हम चित्रकार हैं

हम चित्रकार हैं
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रौशनियों की चकाचौंध में
चमचमाता कैनवास
उल्लास से ब्रश में भरे रंग
उत्साह में डूबा कलाकार
अचानक
अंधाधुंध भागते पैरो के तले
कुचल दिया जाता है 

ऐसा क्या हो जाता है कि 
भीड़ अपनी पहचान मिटाती
भगदड़ में बदल जाती है
और समूचा वातावरण
मासूम,लाचार और द्रवित हो जाता है

यह समय कुछ अजीब सा है
जो प्रकृति के कलाकार
की बनायी चित्रकला को
मिटाने में तुला है

सूख रहीं हैं नदियां
और अधनंगा प्यासा पानी
कोलतार की सड़कों में घूम रहा है
मछलियां किनारों पर आकर
फड़फड़ा रही हैं
जंगल पतझड़ की बाहों में कैद हैं
होने लगा है आसमान में छेद

कैनवास पर अधबनी स्त्री की खूबसूरत देह से
सरकने लगा है आवरण 
चीख रही है स्त्री की छवि
कह रही है
मैं निर्वस्त्र नहीं होना चाहती हूं
कलाकार की लंबी उंगलियां
सिकुड़ने लगी हैं
और वह 
आर्ट गैलरियों की अंधी गुफा में कैद कर लिया गया है

हादसों की यह कहानी 
कौन गढ़ रहा है
यह हमारी तलाश से परे है
इनकी खामोश भूमिका
जीवन मूल्यों के टकराव का
शंखनाद करती हैं 

हम आसमान को गिरते समय 
टेका लगाकर
धराशायी होने से बचाने वाले
और हादसों के घाव से रिस रहे
खून को पोंछने वाले
सृजनात्मक परिवार के सदस्य हैं

हम चित्रकार हैं
प्रकृति को नये सिरे से गढ़ेंगे
स्त्री की देह को नहीं
उसके  मनोभावों को उकेरेंगे----

◆ज्योति खरे

गुरुवार, सितंबर 28, 2023

गूंजती है ब्रह्मांड में

गूंजती है ब्रह्मांड में
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गौधूलि सांझ में
बादलों के झुंड
डूबते सूरज की पीठ पर बैठकर
खुसुरपुसुर बतियाते हैं

समुद्र की मचलती लहरें
किनारों से मिलने
बेसुध होकर भागती हैं 
और जलतरंग की धुन
सजने संवरने लगती है

इस संधि काल में
सूरज को धकियाते
ऊगने लगता है चांद

लहरें 
किनारों पर आकर 
पूछती हैं हालचाल 
जैसे हादसों के इस दौर में
मुद्दतों के बाद
मिलते हैं प्रेमी
करते दिल की बातें
जो गूंजती हैं ब्रह्मांड में---

◆ज्योति खरे

गुरुवार, सितंबर 21, 2023

ज़मीनदार हो गया

सड़क पर घूमते,भटकते
वह अचानक 
प्यार में गिरफ्तार हो गया 
लोग कहने लगे 
अब वह आबाद हो गया 

उसके हिस्से में
पांव के नीचे की ज़मीन
ही तो मिली थी
इस ज़मीन पर
सदाबहार के पेड़ उगाने लगा
सफेद,बैगनी और हल्के लाल रंगों में
अपने प्यार को महसूसता 
और फुरसत के क्षणों में
कच्ची परछी में बैठकर
प्यार से बतियाते हुए
मुस्कराने लगा

मोहल्ले की नज़र क्या लगी
मुरझाने लगा सदाबहार
दरक गयी
कच्ची परछी पर पसरी
मुस्कुराहट

गरीब
एक दिन
अपने हिस्से की ज़मीन पर 
मरा पाया गया
लोग कह रहे हैं
वह गरीब नहीं था
प्यार को बचा पाने की ज़िद में 
ज़मीनदार हो गया ---

◆ज्योति खरे

गुरुवार, सितंबर 07, 2023

अपने चेहरे में

अपने चेहरे में
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वर्षों से सम्हाले 
प्यार के खुरदुरेपन ने
खरोंच डाला है
चेहरे को
लापता हो गयी हैं
दिन,दोपहरें और शामें
काश
पीले पड़ रहे चेहरे को
सुरमा लगाकर
पढ़ पाता इंद्रधनुष
उढ़ा देता
सतरंगी चुनरी

जब कोई
छुड़ाकर हाथों से हाथ
बहुत दूर चला जाता है
तो छूट जाते हैं
जाने-अनजाने
अपनों से अपने
अपने ही सपने
कांच की तरह
टूटकर बिखर जाता है जीवन

फिर नये सिरे से 
कांच के टुकड़ों को समेटकर
जोड़ने की कोशिश करते हैं
देखते हैं 
अपने चेहरे में
अपनों का चेहरा---

◆ज्योति खरे

गुरुवार, अगस्त 31, 2023

कैद हुआ मौसम शहरों में

कैद हुआ मौसम शहरों में
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सुविधाओं का मौसम ठहरा
अपना गूंगा उनका बहरा ठहरा..

चर्चित फूलों के खेतों में
नाजुक भाषा की अगवानी
तुलसी ताक रही अपनों को
माली करते है मनमानी

परिचय की परिभाषा सीमित
संबंधों का मौसम ठहरा..
                    
कैद हुआ मौसम शहरों में
शीशों के घर बसा हुआ है
बाग बगीचे सूख गए हैं
गांव में तो धुआं धुआं है

खोल रखी है स्वागत में सांकल
दरवाजे पर मौसम ठहरा...

◆ज्योति खरे