गुरुवार, नवंबर 29, 2012

गुलमोहर-----------

गुलमोहर------

माना कि तुम्हारे आँगन में
जूही,चमेली,रातरानी
महकती है
पर
तुम अपने आँगन में
बस
एक गुलमोहर लगा लो
सौन्दर्य का जादू जमा लो-------

दोपहर की धूप में भी देहकर
फूलता है गुलमोहर
देता है छांव------

तपती जेठ की दोपहरी में
जब कोई खटखटायेगा 
तुम्हारा दरवाजा
आओगी तुम
"वातानुकूलित"कमरे से निकलकर
उस तपते समय में
तुम्हे और तुम्हारे आगंतुक को
गुलमोहर देगा छांव-------

लाल सुबह के रंग लिये
गुलमोहर के फूल
आत्मिक सौन्दर्य के धनी होकर भी
सुगंध से परे हैं
शान से खिलते हैं-------

धूप से जूझते हैं
तब
जब
तुम्हारे "इनडोर प्लांट"
आंधियों से सूखते हैं-------

तुम्हारे तपे हुये बंगले की दीवारों के बीच
तुम्हारे प्यार भरे सहलाव,अपनत्व में भी
तुम्हारे फूल
कायम नहीं रह पाते
तुम्हारी ही तरह
"सुविधाजीवी"हैं
तुम्हारे फूल--------

तुम गुलमोहर हो सकते हो
किसी आतप से झुलसे जीवन के लिये
छांव दे सकते हो
किसी जलते मन के लिये-------

तुम्हे बाजार मिल जायेगा
सुगंध का
सुविधा से------

तुम जूही,चमेली,गुलाब का
सुगंधित अहसास खरीद सकती हो
पर
गुलमोहर की छांव
नहीं मिलती बाजार में
नहीं बनता इसका "सेंट"

यह तो बस खिलता है
सौन्दर्य की सुगंध भरता है
आंखों से मन में
जीवन में--------

तुम भी गुलमोहर हो सकते हो
बस
अपने आंगन में
एक गुलमोहर लगा लो
सौन्दर्य का जादू जमा लो------------

                  "ज्योति खरे"

(उंगलियां कांपती क्यों हैं-------से )