सोमवार, मार्च 18, 2013

टेसू--------



समेटकर बैचेनियां
फागुन की
दहक गया टेसू
दो घूंट पीकर
महुये की
बहक गया टेसू------

सुर्ख सूरज को
चिढ़ाता खिलखिलाता
प्रेम की दीवानगी का
रूतबा बताता
चूमकर धरती का माथा
चमक गया टेसू------

गुटक कर भांग का गोला
झूमता मस्ती में
छिड़कता प्यार का उन्माद
बस्ती बस्ती में
लालिमा की ओढ़ चुनरी
चहक गया टेसू------

जीवन के बियावान में
पलता रहा
पत्तलों की शक्ल में
ढ़लता रहा
आंसुओं के फूल बनकर
टपक गया टेसू-------

"ज्योति खरे"