बुधवार, मार्च 20, 2013

चिडिया-----


फुदक फुदक
आँगन में आकर
सामूहिक चहचहाती 
अन्नपूर्णा का भजन सुनाती
दाना चुगती
फुर्र हो जाती---

धूप चटकती तब
तिनके तिनके जोड़ जोड़ कर
घर के कोने में 
घोंसला बनाती
जन्मती
नन्ही चहचहाहट
देखकर आईने में
चोंच मारती
थक जाती तो
फुर्र हो जाती-----

समझ गयी जब से तुम
आँगन आँगन
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं
फुदक फुदक कर
अब नहीं आती
टुकुर मुकुर बस देखा करती
फुर्र हो जाती------

एक निवेदन चिड़िया रानी
लौट आओ अब
घर आँगन
नये सिरे से
खोलो द्वार
चहको और चहकाओ-------

"ज्योति खरे"