मंगलवार, जून 30, 2015

स्त्रियां जानती हैं

 
                      
 
                      स्त्री को
                      बचा पाने की
                      जुगत में जुटे
                      पुरुषों की बहस
                      स्त्री की देह से प्रारंभ होकर
                      स्त्री की देह में ही
                      हो जाती है समाप्त ---
 
                      स्त्रियां
                      पुरषों को बचा पाने की जुगत में भी
                      रखती हैं घर को व्यवस्थित
                      सजती संवरती भी हैं ---
 
                      स्त्रियां जानती हैं
                      पुरुषों के ह्रदय
                      स्त्रियों की धड़कनों से
                      धड़कते हैं ---
 
                      पुरुषों की आँखें
                      नहीं देख पाती
                      स्त्री की देह में एक स्त्री
                      स्त्रियों की आँखें 
                      देखती हैं
                      समूची श्रृष्टि -----
                                    
                                     "ज्योति खरे"


चित्र
गूगल से साभार

गुरुवार, जून 18, 2015

होना तो कुछ चाहिए


कविता संग्रह का विमोचन

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वरिष्ठ कवि ज्योति खरे के पहले कविता संग्रह "होना तो कुछ चाहिए" का विमोचन समारोह
24 मई को हिंदी भवन,दिल्ली में आयोजित किया गया.समारोह की अध्यक्षता
भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक और सुप्रसिद्ध कवि श्री लीलाधर मंडलोई जी ने की,
समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि और समालोचक श्री विष्णु नागर जी थे,प्रमुख वक्ता
प्रसिद्ध साहित्यकार श्री उपेन्द्र कुमार जी एवं राजीव श्रीवास्तव की उपस्थिति रही.
समारोह का संचालन प्रसिद्ध कवि समीक्षक डॉ ओम निश्चल जी ने अपने अनूठे अंदाज में किया
विष्णु नागर जी ने पुस्तक का विमोचन करते हुऐ कहा कि आज के दौर की समकालीन कविताओं
का यह संग्रह वर्तमान जीवन की विडंबनाओं को उजागर करता है,साथ ही इन्होंने
कविता के रूप और गुणों पर भी प्रकाश डाला और कविता के निर्माण में कौन सा तत्व सर्वाधित उपयोगी होता है इस विषय पर भी सवाल उठाया, ज्योति खरे को संग्रह पर बधाई और शुभकामनायें दी.
मुख्य वक्ता आलोचक उपेन्द्र कुमार ने कहा कि ज्योति खरे की कवितायें सहजता से बुनी
हुई हैं और मन को प्रभावित करती हैं, इनकी कविताओं में शब्दों की कठिनता नहीं बल्कि
बोलचाल की भाषा का सुंदर और व्यवहारिक प्रयोग है, जो कविताओं को पठनीय बनाता है.
 
 
 साहित्यकार और कला समीक्षक डॉ राजीव श्रीवास्तव ने अपने उद्बोधन में कहा कि
संग्रह की सभी कवितायें नये दौर की बेहतरीन कवितायें हैं,इन्होंने ज्योति खरे के
सातवें और आठवें दशक की, सारिका, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बनी,
नवनीत जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित इनकी रचनाओं से लेकर वर्तमान तक की सृजन
यात्रा पर विस्तार से प्रकाश डाला,
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे "नया ज्ञानोदय" के संपादक और भारतीय ज्ञानपीठ के
निदेशक श्री लीलाधर मंडलोई जी ने कहा कि, एक कस्बाई नुमा शहर में रहकर
कविता लिखना और उसे इतने सालों से बचाकर रखना एक चुनौती पूर्ण काम है,
यही कारण है की इनकी कविताओं में मन की पीड़ा तो है, साथ ही साथ समाज और
जीवन की विडम्बनाओं का भी प्रभाव है,वर्तमान समय की नब्ज को पहचानती इनकी
कविताओं में सहजता है जो मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं.इन्होंने कहा कि संग्रह की
सभी कवितायें समकालीन दौर की बेहतरीन कवितायें हैं.

इस विशेष मौके पर ज्योति खरे ने संग्रह की कुछ कवितायें भी अपने अंदाज में पढ़ी
वरिष्ठ समालोचक डॉ ओम निश्चल ने समारोह का बहुत सृजनात्मक संचालन किया
आभार ब्लू बक पब्लिकेशन्स के प्रबंधक अजय आनन्द ने किया
समारोह में दिल्ली और बाहर से आये साहित्यकारों की उपस्थिति ने समारोह को
गरिमा प्रदान की

आग्रह है पुस्तक यहां से प्राप्त करें, और अपनी सार्थक प्रतिक्रिया दें
सादर आभार सहित -----
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ज्योति खरे